Tuesday 21 May 2013

घणीए रात होग्यी

एक बार रलदू आपणे छोरे की सुसराड चल्या गया | रात नैं जद वो रोटी खा कै बैठक म्ह जाण लग्या तो उसकी समधण नैं कोई बात छेड़ दी | रलदू बात करदा करदा किवांडा धोरै सांकल पकडके खड्या होग्या | जद उननैं बात करद्या नैं कई बार हो गी तो भरपाई ने सोच्या अक इब तो समधी जमां थक लिया होगा | या बात सोच के भरपाई अपणे समधी ती बोल्यी, 'समधीजी, जाओ सो ज्यायो | इब तो घणीए रात होग्यी|' रलदू भरपाई ती बोल्या, 'समधण, मैं तेरी बतला खातर कोणी खड्या | मेरी तो सांकल में आंगली फँस रह्यी सै |'

No comments:

Post a Comment